अकेलापन पहले भी अच्छा लगता था अब भी कभी कभी लगता है मगर अब लगता है कि अकेलापन से लड़ रहे, जूझ रहे एन्जॉय नही कर रहे। थकने लगते है इससे .. बस मन करता है कि जोर जोर से रोये क्योकि कोई देख नही रहा होता है
मगर फिर रो भी नही पाते शायद इसलिए की कमज़ोर पड़ जायेंगे या फिर पता नही क्यों
मगर फिर रो भी नही पाते शायद इसलिए की कमज़ोर पड़ जायेंगे या फिर पता नही क्यों
ऐसा भी नहीं लगता कि इस अकेलेपन से निकलने की जरुरत है क्योंकि ऐसा ख्याल भी मन में आ जाये तो फिर अकेलेपन का नशा सर पर चढ़ने लगता है ...क्योंकि ये भी तो ढंग से नही पता ना की उदासी का कारण अकेलापन ही है या बहुत से कारण है जो अकेलापन को अपना चेहरा बनाये हुए है।
अब धीरे धीरे मुस्कुराने
अब धीरे धीरे मुस्कुराने
की इच्छा भी ख़त्म हो रही,, शायद बड़ा हो रहा हुँ धीरे धीरे मुश्किलों से रूबरू हो रहा हुँ। पहले कोई मुझसे सवाल कर दे तो तमतमा जाता था ...अब कोई मुझ पर कितने भी सवाल करे कोई फर्क नही पड़ता क्योकि मैं अंदर ही अंदर खुद पर उससे ज्यादा संगीन सवाल कर रहा होता हुँ !
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